भगवान क्या है ? What is God ?


हरि ॐ तत् सत्                            ॐ श्री परमात्मने नमः


                             (आदर्श वाक्य)

"अध्यात्म, आत्मा का अध्ययन व आत्मा को जानने का प्राकृतिक विज्ञान। 
 जब अध्यात्म से लोंगे ज्ञान (आत्मज्ञान), तब होगी ईश्वर की पहचान। 
 ले आत्मा आनन्द अध्यात्म से, फिर कर ले मिलन परमानन्द से। 
आत्मा की भाषा मौन, आत्मा का व्यायाम योग।
 जब हो प्राणायाम, आत्मा करे आराम। 
जब लगे ध्यान,आत्मा करे परमात्मा से बात।
जब लगे समाधि, तब हो आत्मा व परमात्मा की शादी।"

      भाग्य उदय होने पर भाग्यवानों को ही ईश्वर की प्राप्ति संभव है। पुण्यकर्मों के उदय होने पर ही ईश्वर की कृपा से ही वास्तविक भक्ति संभव है। वैसे तो सभी ईश्वर के ही भक्त है, सुबह उठते है पूजा करते है, अपना काम करते है मन को शांति मिलती है भक्ति नहीं। 

     भगवान को जानना का वास्तविक अर्थ है आपके सम्पूर्ण सवालों का उत्तर मिल जाना। जितना आपका मन पवित्र होता जाएगा। जब आपके पास तीनों योग कर्मयोग, ज्ञानयोग व भक्तियोग का पवित्र संगम होगा तो आपका ईश्वर से साक्षात्कार हो जाएगा। एक लकड़ी हृदय को जानो दूसरी हरिनाम पहचानो। दोनों लकड़ियों की रगड़ से जब जिह्वा पर राम रूपी अग्नि जल जाएगी तब आत्मा अपने स्वरूप में मिल जाएगी। 

      आत्मा जन्म जन्मांतर शरीर के संबंधों को निभाते हुए आत्मा खुद को देह समझने लगी और इसी के कारण आत्मा का आचार व्यवहार खान पान विकारों के वशीभूत हो गया। जो इंद्रियां आत्मा की गुलाम थी आज वह मालिक बन गई, आत्मा को बेबस कर दिया इसी कारण आत्मा मृत्युलोक में दर दर भटक रही है।

       प्रभु प्राप्ति के लिए हठयोग करते हुए राजयोग में जाना और फिर उस पर चलते हुए ईश्वर को पाना योग का दर्शन है। माया से बड़ा पाप नहीं, योग से बड़ी शक्ति नहीं। इसलिए मेरी प्यारी आत्माओं यहां कोई मोह माया नहीं सब आत्माओं का संगम है। अगर संतानों को संतानों की भाती नहीं आत्मा मानकर उनकी सेवा की जाय तो ईश्वरीय भावनाएं विकसित हो जाएगी। 

      घर को आश्रम बना लो आचरण महापुरुषों जैसा, महान आत्माएं विश्व कल्याण के लिए आपके घर जन्म ले लेगी। चारों और राम नाम की लूट है लूट सको तो लूट। सन्यासी बनने की जरूरत नहीं संन्यासियों कि भाती आचरण करनी की जरूरत है। इंद्रियों के साथ ही है रहना लेकिन उनसे न्यारा है रहना। 

    भगवान के बारे में पढ़ते सब है, देखते सब है, आजकल समझते भी है लेकिन उद्धार उसी का होता है जो ईश्वर के बताए मार्ग पर चलता है। सत्य के मार्ग में चलने के लिए सत्य का मैदान भी तैयार करना है। 

      समय नहीं प्यारी आत्माओं मौन हो जाओ, प्राणायाम करो, ध्यान करो, भजन करो ये मानवरूपी देह बड़े भाग्य से मिलती है। ये कुछ पुण्यों का फल ही है।  
शरीर को शरीर समझना अज्ञान, शरीर को आत्मा मानना ज्ञान है। 


     पापों की जड़ क्या है - वासना, और वासनाओं का स्थान हृदय जब जिह्वा से नाम जप हो हृदय में भगवान के स्वरूप का ध्यान हो तो पाप की जड़ खत्म हो जाती है, पाप की जड़ थोड़ी भी बनी रहती है, वहीं समय पाकर पनप जाती है, इसलिए हृदय में भगवान का ध्यान हो जिह्वा पर भगवान का नाम हो तब सब वासनाएं खत्म हो जाती है, साधक का साधन अमर हो जाता है।

    जननी सब जानो परनारी धन पराय विष ये विष भारी 
                          अर्थात
     पराई स्त्री को माता समझो पराय धन को जहर से भी भारी जहर समझो।

       विद्या व अविद्या क्या है:- अगर देह को आत्मा समझे तो विद्या है, यदि देह को शरीर समझे तो अविद्या है। विद्या वही है, जिससे ईश्वर से साक्षात्कार हो जाए। विद्या वही है जिससे भगवान के दर्शन हो जाए। 

   संत कौन है:-
सोई जो काया साधे।
तज आलस और वाद विवादे।।
क्षमा मंत्र धीरज जो धारे।
पांचों वश कर मन को मारे।।
त्यागे झूठ सांच मुख बोले।
तन जग में मन हरि के पासा।।
योग भोग तू सदा उदासा।
जब सोवे तब शून्य में तब जागे हरि नाम।।
जब बोले तो हरिकथा, भक्ति करे निष्काम।


                            अर्थात 

संत वही है जो सोई काया को साधता है, आलस और फालतू की बातें और झगड़ों को त्यागता है। जिसके पास धैर्य जैसा मंत्र है, जो पांचों इंद्रियों को वश में करकर मार देता है, झूठ त्याग दे, मुंह से हमेशा सच बोले (सत्य की खोज में सत्य तो बोलना ही पड़ेगा), जिसका योग के बिना मन उदास हो जाए, जब सोए एकदम शून्य में मतलब ध्यान में, और जैसे जागे तो बस हरि का नाम ले, जब बोले तो केवल ईश्वर की बात करे, और बिना फल की इच्छा के भक्ति करे वह ही सच्चा संत है। 


      भगवान के प्रेम के लिए पांच चीज होनी चाहिए:- वैराग्य(अंदरमुखी होना), ज्ञान, योग, प्रेम, तप । 

       भक्ति क्या है:- अपना सम्पूर्ण कर्मधर्म भगवान को अर्पित कर दे, थोड़ी देर के लिए भगवान को भूल भी जाए तो भगवान के लिए व्याकुल हो जाना यही भक्ति है। भक्ति की महिमा भारी है। 

ज्ञान वैराग्य सकल गुण आयना सो प्रभु में देखू भरी नयना।
                                  अर्थात 
 ज्ञान और वैराग्य से जब सब गुण आ जाएंगे तब प्रभु को अपनी भरी हुई आंखों से देख पाओगे

     उपरोक्त सूत्र अपना कर देखो, फिर देखो, भक्ति की शक्ति, अध्यात्म का प्रकाश। कुछ दिन में ही प्रकृति अपनी शक्ति का अहसास करा देगी, जब इंसान का बचपन से बुढ़ापे तक रंग, रूप, शरीर व दिमाग बदल देती है, तो जीवन बदलने में भी समय नहीं लगायेगी, प्राकृतिक जीवन तो जीकर देखो । भौतिक सुख सुविधा को त्यागकर तो देखो, ब्रह्मचर्य का आचरण करके तो देखो, जिसको बहाकर इतना सुख मिलता है, तो अंदर रोककर देखो कितना आनन्द देगा। सबसे प्रेम करकर तो देखो , सुख भी तुम्हारे है दुख भी तुम्हारे है, किसे छोड़ूं हे, भगवन दोनों ही तुम्हारे है। 

     सबसे बड़ा रोजगार ईश्वर को पाना ही तो है:- संत मालूक दास जी ने कहा है अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम संत मालूक कह गए सबके दाता राम

                                अर्थात 
     अजगर किसी की नौकरी नहीं करता, एक स्थान पर पड़े पड़े उसे खाना मिल जाता है, और पंछी को दाना सीधा मुंह में मिलता है, प्लेट भी नहीं चाहिए कोई बर्तन भी नहीं चाहिए। क्योंकि पशु पक्षी दिखावा नहीं करते, जैसा ईश्वर ने उन्हें बनाया है, वैसे ही जीवन में चलते है। 

    और छोड़कर तो देखो मांस, मदिरा, ध्रूमपान, दूध, शहद, चीनी व उनसे बनी हर चीज को  गुलामी से दूर करकर तो देखो दूध देने वाले जानवरों को।
सात्विक आहार खाकर तो देखो कुछ ही वर्षों में भगवान अपने हाथ बढ़ा देगा, और आपको महसूस  हो जाएगा कि पुण्यों फल का उदय हो गया है। सब कुछ ईश्वरीय हो जाएगा। 

        लिखते लिखते रोता हु, कि प्यारे खुद के शरीर का नाश मत कर, ये मानव देह ही मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग है, देवताओं को भी ईश्वर प्राप्ति के लिए मानव रूप में जन्म लेना पड़ता है। आंसू आते है, दुख से भरे सब जीवो को देखकर कोई काटा जा रहा है, कोई पीटा जा रहा है। सब अपने है फिर ऐसा क्यों? कभी चमड़े का समान त्यागकर तो देख, रेशम कीट से बने रेशम के कपड़े त्यागकर तो देख, एक बार पूर्ण वीगन बनकर तो देख, बिना पुष्प तोड़े असली भक्ति करकर तो देख। कभी जमीन पर पाव रखकर तो देखो, कभी सात्विक आहार, व्यापार , व्यवहार करके तो देख। प्राकृतिक वस्तुओं का प्रयोग नहीं सदुपयोग करके तो देख। 

       धन से क्या प्रकृति तू खरीदे, राजा बने, फिर                   इतिराय, घमंड करे १  
       मैं (प्रकृति) चाहूं ते पलभर में रंक बने और समूला           जाए ता जीवन भर पछताय ११
                                 अर्थात 
     धन से जो बिजली, पानी, पंखे, चट्टानों को काटकर महल बनाकर उनका भोग करकर, पैसों के दम पर प्रकृति का दुरुपयोग करकर,  भ्रष्टाचार करकर, गरीबों के पेट पर लात मारकर, तू राजा बनकर इतराता है, अगर में चाहूं क्षण भर में तुझे भिखारी बना दु, और तेरा समूल नाश कर दूं, तूने मुझ पर ही बाढ़, भूकंप, तूफान, सूखा, बीमारी, दुर्घटनाएं  आदि बर्बाद व आबाद करने वाली घटनाएं देखी है, मेरे लिए पलभर का काम है, ये सब, फिर जीवनभर पछताएगा। इसलिए मेरे द्वारा बनाई हर कण का केवल सदुपयोग कर इसको तु पैदा नहीं कर सकता, इसका स्वरूप बिगाड़ सकता है, वो भी अगर मेरी मर्जी हो, वरना तेरी औकात ही क्या है । इसलिए समझ मुझे और समझदारी से चल समझदार बन, जिस भौतिक विज्ञान के बल पर तू सब बर्बाद कर रहा है, उस विज्ञान को मेरे परमपिता परमेश्वर के आशीर्वाद 'अध्यात्म ' ने ही  उसको पैदा किया है और मुझे बोला है, अपना थोड़ा सा ज्ञान विज्ञान को भी करा देना, ताकि मेरी सबसे प्यारी मानव रूपी देह को थोड़ा सुख मिल सके वो सुख और आराम से रह सके, लेकिन अगर वह ईश्वर का सच्चा भक्त है, ज्ञानी है तो मुझे, उसी वास्तविक रूप में ग्रहण करे, जिस रूप में मुझे परमपिता ने बनाया है, क्योंकि ईश्वर से मिलाने का मार्ग मेरे हर कण में है। प्रत्यक्ष रूप से में ही तुझे देखती हु, महसूस करती हु, तेरे शरीर के भीतर मेरे पंच तत्व ही तो मौजूद है, तेरी हर एक कहानी पर मेरा नाम है।

     अंदर मन की शांति की गहराई में उतरकर तो देख और निंदा, लिंगभेद और द्वंद से ऊपर उठकर तो देख। ईश्वर अपनी गोद में उठा लेगा। और फिर ये नहीं बोलोगे कि हे! ईश्वर जल्दी उठा ले, यही ही बोलेगा कि, हे ईश्वर इतनी भक्ति दे, इतनी भक्ति दे कि इसी जन्म में कई हजार वर्षों तक रहकर तेरा गुणगान करूं, तेरा ध्यान करूं। सवाल भी भूल जाओगे कि ईश्वर क्या है, और उत्तर भी ढूंढना भूल जाओगे कि ईश्वर कहा है। राम नाम की लूट है लूट सको तो लूट। 

      जितना लिखूं कम है, ये लेख जन्म जन्मों तक कभी खत्म नहीं होगा, क्योंकि ईश्वर की बातें है, और ईश्वर अनंत है और ईश्वर की कथा अनंता। जब तक खुद अनुभव नहीं होगा, तब तक समझ नहीं पाओगे। 

        ईश्वर पढ़ने का विषय नहीं है ,अनुभव का विषय है, ज्ञान का विषय है। ईश्वर के वास्तविक अनुभव से जीव कृत कृत हो उठता है। जीव शून्य हो जाता है, सुख दुख सब सब एकसमान हो जाता है। अच्छाइयों और दृढ़ सिद्धांतों को अपनाने से पुण्य बढ़ता जाएगा। तब ईश्वर कृपा करेंगे तब ही वास्तविक ज्ञान मिलना प्रारंभ हो जाएगा। भक्ति ईश्वरीय कृपा का ही प्रसाद है।
पुण्यफल के उदय होने पर ही संभव है। 

     आगे के लेखों में अपनी आत्मा के अनुभव और वास्तविक अध्यात्म, ईश्वर से मिलने की राह, योग पर योगीराज की मर्जी से ईश्वर का ये छोटा सा गरीब अनपढ़ नौकर, ये दास लिखने की कोशिश उसी की आज्ञा से ही करेगा।  वरन उस परम शक्ति को लिखने की मेरी हैसियत ही क्या है? जिसके एक इशारे पूरा ब्रह्मांड नाचता है। हरि ॐ


हरि ॐ तत् सत्

ॐ श्री परमात्मने नमः 










टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

what is Spritual अध्यात्म का अर्थ पागल हो जाना नहीं?

What is true sprituality? It's not madness?